मैं ने तन्हा कभी उस को देखा नहीं फिर भी जब उस को देखा वो तन्हा मिला जैसे सहरा में चश्मा कहीं या समुन्दर में मीनार-ए-नूर या कोई फ़िक्र-ए-औहाम में फ़िक्र सदियों अकेली अकेली रही ज़ेहन सदियों अकेला अकेला मिला
Tag: उर्दू शायरी
पहला सलाम – कैफ़ि आज़मी
एक रंगीन झिझक एक सादा पयाम कैसे भूलूँ किसी का वो पहला सलाम फूल रुख़्सार के रसमसाने लगे हाथ उठा क़दम डगमगाने लगे रंग-सा ख़ाल-ओ-ख़द से छलकने लगा सर से रंगीन आँचल ढलकने लगा
मैं यह सोचकर – कैफ़ि आज़मी
मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था कि वह रोक लेगी मना लेगी मुझको । हवाओं में लहराता आता था दामन कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको । क़दम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे कि आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको ।
मशवरे – कैफ़ि आज़मी
ये आँधी ये तूफ़ान ये तेज़ धारे कड़कते तमाशे गरजते नज़ारे अंधेरी फ़ज़ा साँस लेता समन्दर न हमराह मिशाल न गर्दूँ पे तारे मुसाफ़िर ख़ड़ा रह अभी जी को मारे
मेरे दिल में तू ही तू है – कैफ़ि आज़मी
मेरे दिल में तू ही तू है दिल की दवा क्या करूँ दिल भी तू है जाँ भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ ख़ुद को खोकर तुझको पा कर क्या क्या मिला क्या कहूँ तेरा होके जीने में क्या क्या आया मज़ा क्या कहूँ कैसे दिन हैं कैसी रातें कैसी फ़िज़ा क्या कहूँ मेरी होके तूने मुझको क्या क्या दिया क्या कहूँ मेरी पहलू में जब तू है फिर मैं दुआ क्या करूँ दिल भी तू है जाँ भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ
मकान – कैफ़ि आज़मी
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी ये ज़मीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी पाँव जब टूटी शाख़ों से उतारे हम ने इन मकानों को ख़बर है न मकीनों को ख़बर उन दिनों की जो गुफ़ाओं में गुज़ारे हम ने
मैं ढूँढता हूँ – कैफ़ि आज़मी
मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता नई ज़मीं नया आसमाँ मिल भी जाये नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता वो तेग़ मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता
पत्थर के ख़ुदा – कैफ़ि आज़मी
पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए । हम चाँद से आज लौट आए । दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं क्या हो गया मेहरबान साए । जंगल की हवाएँ आ रही हैं काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए ।
झुकी झुकी सी नज़र – कैफ़ि आज़मी
झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता मेरी तरह तेरा दिल बेक़रार है कि नहीं
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे – ख़ुमार बाराबंकवी
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे दो गुनहगार ज़हर खा बैठे हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे तीर मारे थे तीर खा बैठे आंधियो जाओ अब आराम करो हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे