अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं। चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं उठने,उठ पड़ने की बात रही साँसों से गीत बे-अनुपात रही
Category: माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।
रचनाएँ
हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं।
कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पांव, अमीर इरादे :गरीब इरादे आदि इनके प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ हैं।
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी – माखनलाल चतुर्वेदी
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! उस सीमा-रेखा पर जिसके ओर न छोर निशानी; मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी !
यह अमर निशानी किसकी है? – माखनलाल चतुर्वेदी
यह अमर निशानी किसकी है? बाहर से जी, जी से बाहर- तक, आनी-जानी किसकी है? दिल से, आँखों से, गालों तक- यह तरल कहानी किसकी है? यह अमर निशानी किसकी है?
आज नयन के बँगले में – माखनलाल चतुर्वेदी
आज नयन के बँगले में संकेत पाहुने आये री सखि! जी से उठे कसक पर बैठे और बेसुधी- के बन घूमें युगल-पलक ले चितवन मीठी, पथ-पद-चिह्न चूम, पथ भूले! दीठ डोरियों पर माधव को
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक – माखनलाल चतुर्वेदी
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक!
ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा – माखनलाल चतुर्वेदी
ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा मेरी सुरत बावली बोली- उतर न सके प्राण सपनों से, मुझे एक सपने में ले ले। मेरा कौन कसाला झेले?
उस प्रभात, तू बात न माने – माखनलाल चतुर्वेदी
उस प्रभात, तू बात न माने, तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई, फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं पर न वहाँ तेरी छवि पाई,
भाई, छेड़ो नहीं, मुझे – माखनलाल चतुर्वेदी
भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो, रहो प्रेम से तुम्हीं मौज से मंजु महल में, मुझे दुखों की इसी झोपड़ी में सोने दो।
चलो छिया-छी हो अन्तर में – माखनलाल चतुर्वेदी
चलो छिया-छी हो अन्तर में! तुम चन्दा मैं रात सुहागन चमक-चमक उट्ठें आँगन में चलो छिया-छी हो अन्तर में!
यह किसका मन डोला – माखनलाल चतुर्वेदी
यह किसका मन डोला? मृदुल पुतलियों के उछाल पर, पलकों के हिलते तमाल पर, नि:श्वासों के ज्वाल-जाल पर, कौन लिख रहा व्यथा कथा?