हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है – राहत इंदौरी 

हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी दिए जलाओ के मैदान साफ़ है, जानी हमे चमकती हुई सर्दियों का खौफ नहीं हमारे पास पुराना लिहाफ है, जानी

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सुला चुकी थी ये दुनिया – राहत इंदौरी 

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे

सर पर बोझ अँधियारों का है मौला – राहत इंदौरी 

सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर और सफ़र कोहसारों का है मौला खैर दुशमन से तो टक्कर ली है सौ-सौ बार सामना अबके यारों का है मौला खैर

वफ़ा को आज़माना चाहिए था – राहत इंदौरी 

वफ़ा को आज़माना चाहिए था, हमारा दिल दुखाना चाहिए था आना न आना मेरी मर्ज़ी है, तुमको तो बुलाना चाहिए था हमारी ख्वाहिश एक घर की थी, उसे सारा ज़माना चाहिए था मेरी आँखें कहाँ नाम हुई थीं, समुन्दर को बहाना चाहिए था

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं – राहत इंदौरी 

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं

तेरी निगाहों ने – विकाश कुमार

तेरी निगाहों ने मुझे तेरी चौखट पर पकड़ा मैंने तेरे इश्क़ से बस बचकर निकलने ही वाला था तूने आकर फिर से मेरे ज़ख़्म हरे कर दिए मेरा वक़्त मेरे ज़ख़्म बस भरने ही वाला था

ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था – राहत इंदौरी 

ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था तेरे सलूक तेरी आगही की उम्र दराज़ मेरे अज़ीज़ मेरा ज़ख़्म भरने वाला था

फिर से एक बार मुझे भुला कर देखिए – विकाश कुमार

मोम को आग लगाकर कर देखिए मुझे कभी तो खुद के बराबर देखिए कभी छुप के देखिए मेरे ज़ख्मों को कभी खुद के ज़ख़्म दिखाकर देखिए

मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ – राहत इंदौरी 

मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ

दुनिया को जला फ़ना कर दे – विकाश कुमार

दुनिया को जला फ़ना कर दे ईमान को झुकने से मना कर दे मेरे दिल बेशक इश्क़ कर दुनियादारी मगर भूलने से मना कर दे