कवि परिचय
ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” (1723 – 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था-
हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने
दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान किया
उनका जन्म आगरा (अकबरपुर) मे हुआ था। उनका बचपन अपने पिता की देखरेख मे बीता। उनके प्यार और करुणा के जीवन में महत्त्व के प्रति नजरिये का मीर के जीवन पे गहरा प्रभाव पड़ा जिसकी झलक उनके शेरो मे भी देखने को मिलती है | पिता के मरणोपरांत, 11 की वय मे, इनके उपर 300 रुपयों का कर्ज था और पैतृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ किताबें। 17 साल की उम्र में वे दिल्ली आ गए। बादशाह के दरबार में 1 रुपया वजीफ़ा मुकर्रर हुआ। इसको लेने के बाद वे वापस आगरा आ गए। 1739 में फ़ारस के नादिरशाह के भारत पर आक्रमण के दौरान समसामुद्दौला मारे गए और इनका वजीफ़ा बंद हो गया। इन्हें आगरा भी छोड़ना पड़ा और वापस दिल्ली आए। अब दिल्ली उजाड़ थी और कहा जाता है कि नादिर शाह ने अपने मरने की झूठी अफ़वाह फ़ैलाने के बदले में दिल्ली में एक ही दिन में 20000-22000 लोगों को मार दिया था और भयानक लूट मचाई थी।
उस समय शाही दरबार में फ़ारसी शायरी को अधिक महत्व दिया जाता था। मीर तक़ी मीर को उर्दू में शेर कहने का प्रोत्साहन अमरोहा के सैयद सआदत अली ने दिया। 25-26 साल की उम्र तक ये एक दीवाने शायर के रूप में ख्यात हो गए थे। 1748 में इन्हें मालवा के सूबेदार के बेटे का मुसाहिब बना दिया गया। लेकिन 1761 में एक बार फ़िर भारत पर आक्रमण हुआ। इस बार बारी थी अफ़गान सरगना अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) की। वह नादिर शाह का ही सेनापति था। पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठे हार गए। दिल्ली को फिर बरबादी के दिन देखने पड़े। लेकिन इस बार बरबाद दिल्ली को भी वे अपने सीने से कई दिनों तक लगाए रहे। अहमद शाह अब्दाली के दिल्ली पर हमले के बाद वह अशफ – उद – दुलाह के दरबार मे लखनऊ चले गये। अपनी जिन्दगी के बाकी दिन उन्होने लखनऊ मे ही गुजारे।
“मीर के शि`र का अह्वाल कहूं क्या ग़ालिब
जिस का दीवान कम अज़-गुल्शन-ए कश्मीर नही”
काव्यशाला द्वारा प्रकाशित रचनाएँ
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आए हैं मीर मुँह को बनाए
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कहा मैंने
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बेखुदी ले गयी
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अपने तड़पने की
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हस्ती अपनी होबाब की सी है
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फ़कीराना आए सदा कर चले
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बेखुदी कहाँ ले गई हमको
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अश्क आंखों में कब नहीं आता
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गम रहा जब तक कि दम में दम रहा
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देख तो दिल कि जाँ से उठता है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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दिल-ऐ-पुर_खूँ की इक गुलाबी से(शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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इधर से अब्र उठकर जो गया है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या
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पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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न सोचा न समझा न सीखा न जाना (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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गुल को महबूब में क़यास किया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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जो तू ही सनम हम से बेज़ार होगा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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काबे में जाँबलब थे हम दूरी-ए-बुताँ से (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मानिंद-ए-शमा मजलिस-ए-शब अश्कबार पाया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मिलो इन दिनों हमसे इक रात जानी (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मुँह तका ही करे है जिस-तिस का (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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शब को वो पीए शराब निकला (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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तुम नहीं फ़ितना-साज़ सच साहब (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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क्या कहूँ तुम से मैं के क्या है इश्क़ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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आँखों में जी मेरा है इधर यार देखना (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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सहर गह-ए-ईद में दौर-ए-सुबू था (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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जिस सर को ग़रूर आज है याँ ताजवरी का (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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महर की तुझसे तवक़्क़ो थी सितमगर निकला (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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बारहा गोर दिल झुका लाया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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आ जायें हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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बात क्या आदमी की बन आई (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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कोफ़्त से जान लब पर आई है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मेरे संग-ए-मज़ार पर फ़रहाद (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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ब-रंग-ए-बू-ए-गुल, इस बाग़ के हम आश्ना होते (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मीर दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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यार बिन तल्ख़ ज़िंदगनी थी (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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शिकवा करूँ मैं कब तक उस अपने मेहरबाँ का (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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अब जो इक हसरत-ए-जवानी है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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चलते हो तो चमन को चलिये (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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दुश्मनी हमसे की ज़माने ने (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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यारो मुझे मुआफ़ करो मैं नशे में हूँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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दिल से शौक़-ए-रुख़-ए-निको न गया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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आरज़ूएं हज़ार रखते हैं (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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रही नगुफ़्ता मेरे दिल में दास्ताँ मेरी (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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हम जानते तो इश्क न करते किसू के साथ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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यही इश्क़ ही जी खपा जानता है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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नाला जब गर्मकार होता है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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उम्र भर हम रहे शराबी से (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मसाइब और थे पर दिल का जाना (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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नहीं विश्वास जी गँवाने के (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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बेकली बेख़ुदी कुछ आज नहीं (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मामूर शराबों से कबाबों से है सब देर (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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मरते हैं हम तो आदम-ए-ख़ाकी की शान पर (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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कुछ करो फ़िक्र मुझ दीवाने की (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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हमारे आगे तेरा जब किसी ने नाम लिया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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आ के सज्जाद (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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दिखाई दिये यूँ कि बेख़ुद किया (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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ज़ख्म झेले दाग़ भी खाए बोहत (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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न दिमाग है कि किसू से हम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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हर जी का हयात है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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चुनिन्दा अश्आर- भाग एक (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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चुनिन्दा अश्आर- भाग दो (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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चुनिन्दा अश्आर- भाग तीन (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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चुनिन्दा अश्आर- भाग चार (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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चुनिन्दा अश्आर- भाग पाँच (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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चाक करना है इसी ग़म से (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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गुल ब बुलबुल बहार में देखा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
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अए हम-सफ़र न आब्ले (शीघ्र प्रकाशित होंगी)