नीम से होकर निबोरी बनाते हैं पिता – विकास कुमार

पिता के महत्व को ना कम आंकिय
माँ की हर ख़ुशी को पिता से भी बांटिए
माँ यदि ममता है तो पिता पुरूषार्थ है
पिता बिन जग में ना कोई परमार्थ है
हर अर्थ व्यर्थ है यदि पिता असमर्थ है
पिता से ही घर का हर कोना समर्थ है
मां यदि कलम है तो पिता उसकी स्याही है
पिता बिना घर की हर बेटी अनब्याही है
माँ यदि जमीन है तो पिता आसमान हैं
टूटते हुए घरों की पिता ही तो छान हैं
माँ फूल कलियाँ है, पिता सींचते पानी हैं
घर के बगीचे के मेहनत करते माली हैं
पिता नहीं तो घर फिर उजड़ा मकान है
पिता से घर का हर सपना साकार है
पिता है तो रोटी सब्जी का थाल है
पिता नहीं तो जीवन जीवन बेहाल है
माँ की बिंदी औऱ होठों की लाली है
पिता से ही घर की हर जगह उजियारी है
पिता है तो घर के होठों पर मुस्कान हैं
देश का अनुशासन पिता का कानून है
चलते फिरते पिता बरगद की छाँव हैं
पिता से ही सुंदर सारे अहसास हैं
पिता ही तो कुम्हार के हाथों की थाप है
पिता बिन जीवन जीवन अभिशाप है
जीवन यदि प्रश्न है तो पिता उसके उत्तर हैं
माँ के हर दुलार में पिता भी समानांतर हैं
जीवन जीने का सलीका सिखाते हैं पिता
नीम होकर भी निबोली बनाते हैं पिता
चलती फिरती राहों में मंजिलों से मिलाते हैं पिता
कर सको तो आज इतना अहसान करो
पिताओं को भी आज तुम माँ की तरह प्यार करो

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कवि – विकास कुमार

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि विकास कुमार जी की है । वह वित्त मंत्रालय नार्थ ब्लाक दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं । उनकी दैनिंदिनी में कभी कभी  उन्हें लिखने का भी समय मिल जाता है । वैसे तो उनका लेखन किसी वस्तु विशेष के बारे में नहीं रहता मगर न चाहते हुए भी आप उनके लेखन में उनके स्वयं के जीवन अनुभव को महसूस कर सकते हैं । हम आशा करते हैं की आपको उनकी ये कविता पसंद आएगी ।

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