इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
यह चाँद उदित होकर नभ में
कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरा लहरा यह शाखाएँ
कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ
हँसकर कहती हैं मगन रहो,
बुलबुल तरु की फुनगी पर से
संदेश सुनाती यौवन का,
तुम देकर मदिरा के प्याले
मेरा मन बहला देती हो,
उस पार मुझे बहलाने का
उपचार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
जग में रस की नदियाँ बहती,
रसना दो बूंदें पाती है,
जीवन की झिलमिलसी झाँकी
नयनों के आगे आती है,
स्वरतालमयी वीणा बजती,
मिलती है बस झंकार मुझे,
मेरे सुमनों की गंध कहीं
यह वायु उड़ा ले जाती है;
ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये,
ये साधन भी छिन जाएँगे;
तब मानव की चेतनता का
आधार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
प्याला है पर पी पाएँगे,
है ज्ञात नहीं इतना हमको,
इस पार नियति ने भेजा है,
असमर्थबना कितना हमको,
कहने वाले, पर कहते है,
हम कर्मों में स्वाधीन सदा,
करने वालों की परवशता
है ज्ञात किसे, जितनी हमको?
कह तो सकते हैं, कहकर ही
कुछ दिल हलका कर लेते हैं,
उस पार अभागे मानव का
अधिकार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
कुछ भी न किया था जब उसका,
उसने पथ में काँटे बोये,
वे भार दिए धर कंधों पर,
जो रो-रोकर हमने ढोए;
महलों के सपनों के भीतर
जर्जर खँडहर का सत्य भरा,
उर में ऐसी हलचल भर दी,
दो रात न हम सुख से सोए;
अब तो हम अपने जीवन भर
उस क्रूर कठिन को कोस चुके;
उस पार नियति का मानव से
व्यवहार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
संसृति के जीवन में, सुभगे
ऐसी भी घड़ियाँ आएँगी,
जब दिनकर की तमहर किरणे
तम के अन्दर छिप जाएँगी,
जब निज प्रियतम का शव, रजनी
तम की चादर से ढक देगी,
तब रवि-शशि-पोषित यह पृथ्वी
कितने दिन खैर मनाएगी!
जब इस लंबे-चौड़े जग का
अस्तित्व न रहने पाएगा,
तब हम दोनो का नन्हा-सा
संसार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
ऐसा चिर पतझड़ आएगा
कोयल न कुहुक फिर पाएगी,
बुलबुल न अंधेरे में गागा
जीवन की ज्योति जगाएगी,
अगणित मृदु-नव पल्लव के स्वर
‘मरमर’ न सुने फिर जाएँगे,
अलि-अवली कलि-दल पर गुंजन
करने के हेतु न आएगी,
जब इतनी रसमय ध्वनियों का
अवसान, प्रिये, हो जाएगा,
तब शुष्क हमारे कंठों का
उद्गार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
सुन काल प्रबल का गुरु-गर्जन
निर्झरिणी भूलेगी नर्तन,
निर्झर भूलेगा निज ‘टलमल’,
सरिता अपना ‘कलकल’ गायन,
वह गायक-नायक सिन्धु कहीं,
चुप हो छिप जाना चाहेगा,
मुँह खोल खड़े रह जाएँगे
गंधर्व, अप्सरा, किन्नरगण;
संगीत सजीव हुआ जिनमें,
जब मौन वही हो जाएँगे,
तब, प्राण, तुम्हारी तंत्री का
जड़ तार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
उतरे इन आखों के आगे
जो हार चमेली ने पहने,
वह छीन रहा, देखो, माली,
सुकुमार लताओं के गहने,
दो दिन में खींची जाएगी
ऊषा की साड़ी सिन्दूरी,
पट इन्द्रधनुष का सतरंगा
पाएगा कितने दिन रहने;
जब मूर्तिमती सत्ताओं की
शोभा-सुषमा लुट जाएगी,
तब कवि के कल्पित स्वप्नों का
श्रृंगार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
दृग देख जहाँ तक पाते हैं,
तम का सागर लहराता है,
फिर भी उस पार खड़ा कोई
हम सब को खींच बुलाता है;
मैं आज चला तुम आओगी
कल, परसों सब संगीसाथी,
दुनिया रोती-धोती रहती,
जिसको जाना है, जाता है;
मेरा तो होता मन डगडग,
तट पर ही के हलकोरों से!
जब मैं एकाकी पहुँचूँगा
मँझधार, न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
हरिवंशराय बच्चन जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ
-
मधुशाला
-
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
-
तीर पर कैसे रुकूँ मैं
-
अग्निपथ
-
जो बीत गयी सो बात गयी
-
चल मरदाने
-
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
-
कोई पार नदी के गाता
-
क्या है मेरी बारी में
-
लो दिन बीता लो रात गयी
-
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
-
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
-
आत्मपरिचय
-
मैं कल रात नहीं रोया था
-
नीड का निर्माण
-
त्राहि त्राहि कर उठता जीवन
-
इतने मत उन्मत्त बनो
-
स्वप्न था मेरा भयंकर
-
तुम तूफान समझ पाओगे
-
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
-
मेघदूत के प्रति
-
साथी, साँझ लगी अब होने!
-
गीत मेरे
-
लहर सागर का श्रृंगार नहीं
-
आ रही रवि की सवारी
-
चिडिया और चुरूंगुन
-
पतझड़ की शाम
-
राष्ट्रिय ध्वज
-
साजन आए, सावन आया
-
प्रतीक्षा
-
आदर्श प्रेम
-
आज फिर से (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आत्मदीप (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आज़ादी का गीत (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
बहुत दिनों पर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एकांत-संगीत (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
इस पार उस पार (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जाओ कल्पित साथी मन के (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कवि की वासना (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
किस कर में यह वीणा धर दूँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कोई गाता मैं सो जाता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
साथी, सब कुछ सहना होगा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जुगनू (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कहते हैं तारे गाते हैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कोई पार नदी के गाता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्या भूलूं क्या याद करूँ मैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मेरा संबल (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मुझसे चांद कहा करता है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
पथ की पहचान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
साथी साथ ना देगा दुख भी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
यात्रा और यात्री (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
युग की उदासी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आज मुझसे बोल बादल (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
साथी सो ना कर कुछ बात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
तब रोक ना पाया मैं आंसू (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आज तुम मेरे लिये हो (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मनुष्य की मूर्ति (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
उस पार न जाने क्या होगा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
रीढ़ की हड्डी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हिंया नहीं कोऊ हमार! (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जीवन का दिन बीत चुका था छाई थी जीवन की रात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हो गयी मौन बुलबुले-हिंद (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
गर्म लोहा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
टूटा हुआ इंसान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मौन और शब्द (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
शहीद की माँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क़दम बढाने वाले: कलम चलाने वाले (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एक नया अनुभव (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
दो पीढियाँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्यों जीता हूँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कौन मिलनातुर नहीं है ? (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है? (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्यों पैदा किया था? (शीघ्र प्रकाशित होगी)