कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
1.
सृष्टि के प्रारंभ में
मैने उषा के गाल चूमे,
बाल रवि के भाग्य वाले
दीप्त भाल विशाल चूमे,
प्रथम संध्या के अरुण दृग
चूम कर मैने सुलाए,
तारिका-कलि से सुसज्जित
नव निशा के बाल चूमे,
वायु के रसमय अधर
पहले सके छू होठ मेरे
मृत्तिका की पुतलियो से
आज क्या अभिसार मेरा?
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
2.
विगत-बाल्य वसुंधरा के
उच्च तुंग-उरोज उभरे,
तरु उगे हरिताभ पट धर
काम के धव्ज मत्त फहरे,
चपल उच्छृंखल करों ने
जो किया उत्पात उस दिन,
है हथेली पर लिखा वह,
पढ़ भले ही विश्व हहरे;
प्यास वारिधि से बुझाकर
भी रहा अतृप्त हूँ मैं,
कामिनी के कंच-कलश से
आज कैसा प्यार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
3.
इन्द्रधनु पर शीश धरकर
बादलों की सेज सुखकर
सो चुका हूँ नींद भर मैं
चंचला को बाहों में भर,
दीप रवि-शशि-तारकों ने
बाहरी कुछ केलि देखी,
देख, पर, पाया न कोई
स्वप्न वे सुकुमार सुंदर
जो पलक पर कर निछावर
थी गई मधु यामिनी वह;
यह समाधि बनी हुई है
यह न शयनागार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
4.
आज मिट्टी से घिरा हूँ
पर उमंगें हैं पुरानी,
सोमरस जो पी चुका है
आज उसके हाथ पानी,
होठ प्यालों पर टिके तो
थे विवश इसके लिये वे,
प्यास का व्रत धार बैठा;
आज है मन, किन्तु मानी;
मैं नहीं हूँ देह-धर्मों से
बिधा, जग, जान ले तू,
तन विकृत हो जाये लेकिन
मन सदा अविकार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
5.
निष्परिश्रम छोड़ जिनको
मोह लेता विश्व भर को,
मानवों को, सुर-असुर को,
वृद्ध ब्रह्मा, विष्णु, हर को,
भंग कर देता तपस्या
सिद्ध, ऋषि, मुनि सत्तमों की
वे सुमन के बाण मैंने,
ही दिये थे पंचशर को;
शक्ति रख कुछ पास अपने
ही दिया यह दान मैंने,
जीत पाएगा इन्हीं से
आज क्या मन मार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
6.
प्राण प्राणों से सकें मिल
किस तरह, दीवार है तन,
काल है घड़ियां न गिनता,
बेड़ियों का शब्द झन-झन
वेद-लोकाचार प्रहरी
ताकते हर चाल मेरी,
बद्ध इस वातावरण में
क्या करे अभिलाष यौवन!
अल्पतम इच्छा यहां
मेरी बनी बंदी पड़ी है,
विश्व क्रीडास्थल नहीं रे
विश्व कारागार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
7.
थी तृषा जब शीत जल की
खा लिये अंगार मैंने,
चीथड़ों से उस दिवस था
कर लिया श्रृंगार मैंने
राजसी पट पहनने को
जब हुई इच्छा प्रबल थी,
चाह-संचय में लुटाया
था भरा भंडार मैंने;
वासना जब तीव्रतम थी
बन गया था संयमी मैं,
है रही मेरी क्षुधा ही
सर्वदा आहार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
8.
कल छिड़ी, होगी ख़तम कल
प्रेम की मेरी कहानी,
कौन हूँ मैं, जो रहेगी
विश्व में मेरी निशानी?
क्या किया मैंने नही जो
कर चुका संसार अबतक?
वृद्ध जग को क्यों अखरती
है क्षणिक मेरी जवानी?
मैं छिपाना जानता तो
जग मुझे साधू समझता,
शत्रु मेरा बन गया है
छल-रहित व्यवहार मेरा!
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
हरिवंशराय बच्चन जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ
-
मधुशाला
-
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
-
तीर पर कैसे रुकूँ मैं
-
अग्निपथ
-
जो बीत गयी सो बात गयी
-
चल मरदाने
-
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
-
कोई पार नदी के गाता
-
क्या है मेरी बारी में
-
लो दिन बीता लो रात गयी
-
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
-
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
-
आत्मपरिचय
-
मैं कल रात नहीं रोया था
-
नीड का निर्माण
-
त्राहि त्राहि कर उठता जीवन
-
इतने मत उन्मत्त बनो
-
स्वप्न था मेरा भयंकर
-
तुम तूफान समझ पाओगे
-
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
-
मेघदूत के प्रति
-
साथी, साँझ लगी अब होने!
-
गीत मेरे
-
लहर सागर का श्रृंगार नहीं
-
आ रही रवि की सवारी
-
चिडिया और चुरूंगुन
-
पतझड़ की शाम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
राष्ट्रिय ध्वज (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
साजन आए, सावन आया (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
प्रतीक्षा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आदर्श प्रेम (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आज फिर से (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आत्मदीप (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आज़ादी का गीत (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
बहुत दिनों पर (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एकांत-संगीत (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
इस पार उस पार (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जाओ कल्पित साथी मन के (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कवि की वासना (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
किस कर में यह वीणा धर दूँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कोई गाता मैं सो जाता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
साथी, सब कुछ सहना होगा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जुगनू (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कहते हैं तारे गाते हैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कोई पार नदी के गाता (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्या भूलूं क्या याद करूँ मैं (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मेरा संबल (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मुझसे चांद कहा करता है (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
पथ की पहचान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
साथी साथ ना देगा दुख भी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
यात्रा और यात्री (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
युग की उदासी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आज मुझसे बोल बादल (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
साथी सो ना कर कुछ बात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
तब रोक ना पाया मैं आंसू (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
आज तुम मेरे लिये हो (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मनुष्य की मूर्ति (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
उस पार न जाने क्या होगा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
रीढ़ की हड्डी (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हिंया नहीं कोऊ हमार! (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
जीवन का दिन बीत चुका था छाई थी जीवन की रात (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
हो गयी मौन बुलबुले-हिंद (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
गर्म लोहा (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
टूटा हुआ इंसान (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
मौन और शब्द (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
शहीद की माँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क़दम बढाने वाले: कलम चलाने वाले (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
एक नया अनुभव (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
दो पीढियाँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्यों जीता हूँ (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
कौन मिलनातुर नहीं है ? (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है? (शीघ्र प्रकाशित होगी)
-
क्यों पैदा किया था? (शीघ्र प्रकाशित होगी)
One thought on “कवि की वासना – हरिवंशराय बच्चन”