कल कल करती नदियों में
मृदुभाव ह्र्दय के बहते हैं
प्रेमकाज मृदु शब्द सुनहरे
परमारथ मेँ कहते हैं
लेखन का लेख बने ये कभी
कभी युगलों की प्यास बुझाते हैं
नव आशा संचार लिये
ह्रदय का संताप मिटाते हैं
कविता है प्रकृति की उपमा
संसार का सार बताती है
ह्रदय के उदगारों से यह
ब्रह्माण्ड नित नये रचाती है
सूतपुत्र कर्णों की गाथा
रश्मिरथी बनकर गाती
दीन हीन विदीर्ण ह्रदयों में
पैबन्द प्रेम के बन जाती
स्वर्ग नये नित रचती रहती
मानव को राह दिखाती है
फूल फूल महका कर के
सृष्टि में इत्र बहाती है
कवि ने कविता रचकर के
दुनिया को राह दिखा डाली
ह्रदय में उठती आहों ने
प्रेम की नव राह बना डाली
सत्ता के मद में चूर नृपों ने
जब जब जनता पर वार किया
शब्दों ने विराट स्वरूप संजो कर
लोकतंत्र का आह्वान किया
कविता आत्मा का सौंदर्य रूप
सृजन भावों का करती है
शब्दों की सरिता से कल कल
नव जीवन सिंचित करती है।

यह कविता हमारे कवि मंडली के नवकवि विकास कुमार जी की है । वह वित्त मंत्रालय नार्थ ब्लाक दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं । उनकी दैनिंदिनी में कभी कभी उन्हें लिखने का भी समय मिल जाता है । वैसे तो उनका लेखन किसी वस्तु विशेष के बारे में नहीं रहता मगर न चाहते हुए भी आप उनके लेखन में उनके स्वयं के जीवन अनुभव को महसूस कर सकते हैं । हम आशा करते हैं की आपको उनकी ये कविता पसंद आएगी ।
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नीम से होकर (शीघ्र प्रकाशित होगी)