नदी की गहराई में छुपी मिट्टी हुँ मैं
जिस साँचे में डालो, ढल जाती हुँ मैं…..
आँशुयो की बेमौसम बरसात हुँ मैं
दिल का दर्द सहने में पत्थर हुँ मैं…..
आँगन की बगिया की कली हुँ मैं
तो आंधी में खड़ा सख्त दरख़्त हुँ मैं…..
मन मे बसी कामिनी सा सौंदर्य हुँ मैं
आँखो पर पर्दा हो तो सिर्फ बेजान हुँ मैं……
कभी लक्ष्मी ,कभी सरस्वती ,कभी दुर्गा
शक्ति का अहसास जब हो ..तो काली हुँ मैं…..
हिरणी सी प्यारी महकती चंचलता हुँ मैं
हर सांस में जीती नये जीवन की सौगात हुँ मैं….
भाषा और शब्दों में क्या बयां करूँ मैं ?
तुम्हारी हर परिभाषा से कहीं अधिक हुँ मैं….
शाम सी सुरमयी सुबह सी सुनहरी हुँ मैं
बंधन में बंधकर भी हर बंधन से आज़ाद हुँ मैं….
कुछ भी तो नही या सबकुछ हुँ मैं
सिर्फ औरत हुँ….हाँ औरत हुँ मैं….।।

इनका नाम प्रिया आर्य है परंतु उनका मानना है की कवितायें दीवानेपन में लिखी जाती हैं इसीलिए वह प्रिया दीवानी के नाम से लिखना पसंद करती हैं। वह यह भी कहती हैं की वह सिर्फ़ अहसासों को कागज पर उतारती हैं और स्वतः उनका उनका कोई योगदान नहीं होता । हमें आशा है की आपको उनकी यह अनोखी सोच पसंद आएगी ।