वो पल आँसू दे जाते हैं
हम कई यादे छोड़ जाते हैं कई अधूरी बातें छोड़ जाते हैं ।।।।।
जो न हुयी,
शायद न होनी थी,
वो मुलाकातें छोड़ जाते हैं।
कुछ यादें दरिया बन जाती है, कुछ दिल के समंदर में समां जाती हैं।
बस हम तो किनारें पर चमकती सीपियाँ छोड़ जाते हैं।
पता नहीं आँखे नम क्यों हो जाती हैं।
पता चलती है आंसुओ की गर्माहट तब का जब वे आँख से हाथ पर आ जाती है
शायद अब यंहा आना कभी न हो।
इस मोसम में अपनापन फिर न हो।
वो बीता कल वापिस न आये।
गुजारे हुए पल बापिस न आये।
मगर जीते है इसी उम्मीद से की काश वो लम्हें फिर लोट आये
– सोमिल जैन ‘सोमू’

सोमिल जैन “सोमू’ जी का मानना है की अभी तक उन्होंने ऐसा कोई तीर नहीं मारा है जो वो आपको अपना परिचय दे सकें परंतु काव्यशाला नव कवि मंडली से जुड़ने की उत्सुकता ने उन्हें अपना परिचय लिखने पर विवश कर दिया। वह दलपतपुर, सागर मध्यप्रदेश के निवासी है द्वितीय वर्ष (कला) के विद्यार्थी हैं। उन्हें आजकल किताबों से प्रेम हो गया है और यही कारण है की उनकी रुचि लेखन में भी हो गयी है। वह कविता, गजल, नगमे और शायरी लिखने का शौक एवं जुनून रखते हैं। हम इसी जुनून को आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। हमें आशा है की आपको उनकी ये रचना पसंद आएगी।
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