the last letter – कुमार शान्तनु

शाम का वक़्त था , जब शांत गंगा के साथ जल रही एक शांत चिता के पास उस चिता पर जल रहे शांत शव के पास, मैं भी शांत खड़ी थी और उस आग की आखिरी राख तक ना जाने किस उम्मीद में वहीँ खड़ी रही , बिना रोए , बिना किसी को भी कुछ कहे।

मैं चुप चाप खड़ी थी पर लग रहा था कोई बातें कर रहा है मुझसे , कोई है जो समझा रहा था मुझे

मैं कभी मान जानती तो कभी खुद को मना न पाती , कभी समझ तो आता पर समझा न पाती

समझने और समझाने की इस असमंजस को साथ लिए , उनकी चिता की आग की बनी राख को वहीँ छोड़ मैं घर की और चल पड़ी जहाँ अब सिर्फ मैं रहती हूँ

घर आकर मैं हमारे कमरे में बिस्तर पर जहाँ वो सोया करते थे , सिरहाने को गोद में ले बैठ गयी। और ऐसा लग रहा था जैसे वो भी वहीँ आस पास थे , मन ही मन मुझसे बातें कर रहे थे।

मैं उनके बिस्तर की चादर को अपने हाथों से सरहाने लगी और चादर को ठीक करते हुए मुझे मेरे सिरहाने के नीचे एक fold किया हुआ कागज़ मिला।

मैंने उस कागज़ को उठाकर उसे खोला, उस पर कुछ लिखा था, आँखों पर चश्मा नहीं था तो ठीक से पढ़ नहीं पाई।

फिर बिस्तर खड़ी होकर धुंदली नज़रो को लिए हाथों के एहसास से मैं अपनी ऐनक को ढूंढ़ने लगी।

ऐनक ढूंढ़ते ढूंढते मुझे उनकी वो शरारतें याद आ गयी , जब वो अक्सर अपने सर पर ऐनक रख इधर उधर ढूंढ़ने लगते तो कभी अखबार पढ़ने या कुछ लिखने की जल्दी में गुस्सा करने लगते।

हम दोनों के दोबारा मिलने के कुछ महीनों बाद , जब बच्चे अपनी अपनी दुनिया में खुश थे , और मैं उनके पापा के जाने के बाद अकेली थी , और शायद ये भी यूहीं अकेले रहा करते थे यहाँ।

उसने एक दिन मुझे कहा , ” देखो हम बूढ़े हो गए है ,हमारे पास ज्यादा वक़्त नहीं है और हम दोनों ने अपना पूरा जीवन एक दूसरे के बिना ही गुजार दिया।

तब हालात और ख़्यालात कुछ और थे , पर अब कोई नहीं है , ना कोई समाज ना रिश्तेदार ना घर ना परिवार जो हमें एक साथ रहने से रोक सके।

लिख़ने का बहुत शौक था उसे , कहते थे चलो, अब जब तक ज़ीवन बाकी है , हम दोनों अपने गुजरे हुए पल के कुछ सच एक दूसरे को रोज़ एक letter लिख कर बताएँगे।

और फिर हम रोज़ एक दूसरे को एक letter लिखते और वो उन्हें अपने पास रखे एक box में रखते और मैं अपने box में।

अक्सर कहते थे मेरे दो लड़के है , अमरीका रहते है।

कुछ नाम भी बताये थे शायद

हाँ ” राहुल और रोहन ”

पर कभी कोई फोटो नहीं दिखायी।

उनके नाम सुनकर अक्सर गुस्सा आ जाता था उन्हें और कहते थे , “नालायक है दोनों , मुझे कोई बात नहीं उनके बारें में।

जितने letter उसने लिखे सब में ज़्यादातर अपनी ज़िन्दगी का संघर्ष लिखा या मेरे साथ जवानी में बिताये दिनों की यादों को लिखा उसने।

कहते थे बीवी , बहुत पहले छोड़ कर चली गयी थी , कोई बहुत पुरानी फोटो भी दिखाई थी उसने अपनी बीवी की।

मैंने कभी उसकी बीती ज़िन्दगी का कोई प्रमाण नहीं माँगा , पर वो हर बात अपने letters में इस क़दर बयान करते थे , मानो एक एक शब्द में उनकी ज़िन्दगी का सच नज़र आता था।

उनकी छोटी – छोटी यादें अक्सर चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान और आँखों में हल्की सी नमी बिखेर देती है।

यूहीं उसके बारें में सोचते सोचते

कुछ देर बाद , मुझे मेरी ऐनक study table पर ठीक वहीँ मिली ,जहाँ वो अक्सर बैठ कर लिखा करते थे।

मैंने अपनी ऐनक को आँखों पर टिकाया और हाथ में लिए घूम रही उस कागज़ पर लिखे हुए शब्दों की ओर देखा

सबसे ऊपर bold letters में underline के साथ लिखा था

” The Last Letter”

प्रिय राधिका

मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की मैं सिर्फ कुछ और दिनों का मेहमान हूँ , हाँ , इस बार मैं तुम्हे हमेशा के लिए छोड़ कर जाने वाला हूँ ,क्यूंकि शायद तुम्हारे इलावा इस दुनिया में अब कोई नहीं जिसको मैं छोड़ कर जाऊ, अपनी बीमारी की तक़लीफ़ बता कर मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था।

पर जाते जाते तुम्हे एक सच बताना चाहता हूँ , आज तक मैंने अपनी चिठियों में जो भी सच लिखा , सब कहानी थी।

पर सोचता हूँ , अब जाने से पहले तुम्हें सच बताकर जाऊ , वैसे भी क्या फर्क पड़ता है अगर मेरे जाने के बाद तुम ये सच जान भी लेती हो।

पर हाँ एक फर्क तो पड़ता है , हो सकता है तुम्हारे अंदर मेरे लिए मोहब्बत कम हो जाये और मैं ये न तब चाहता था और न अब चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता की जाते जाते मैं तुम्हारे अंदर से अपनी मोहब्बत को ज़रा भी कम होने कर जाऊँ। और फिर तुम्हारी मोहब्बत ही जिसकी वजह से मैं बड़ी सुकुनियत के साथ अलविदा ले रहा हूँ तुमसे

तो सोचता हूँ , मेरा ये सच मेरे साथ ही रहने दो , मेरे साथ ही जाने दो।

(तुम्हारा और हमेशा से तुम्हारा)

उनके लिखे उस आखरी letter को पढ़ मेरे चेहरे पर उनकी यादों और प्यार भरी बातों की मुस्कराहट आज भी आती है और आँखे उनके चले जाने के ग़म में आज भी भर आती है।

– कुमार शांतनु

काव्यशाला द्वारा प्रकाशित रचनाएँ

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