इन काली काली रातों में,एक नन्हा दीपक जलता है।
मगर अफ़सोस वो बेजुबाँ,क्यों बिखरा बिखरा रहता है,क्यों उखड़ा उखड़ा रहता है।
इन गम के तुफानो में,कंही महफूज पलता है।
सांसे न रुक जाएँ कभी,लहरों से बचकर छिपता है,लहरों से बचकर जलता है।
इन काली काली……….
एक दिन ऐसा हुआ,नजदीक आया छोटा दिया।
मुस्कुराते हुए पूछा- बड़े भाई क्या हुआ।
लहरों तूफान भवन्दर से,उसका यह रूप सिसकता है।
इन काली काली………….
डर लगता है चट्टानों से,इन लहरों से तूफानों से।
पल पल उसको बुझने का,ये दर्द दिलों में पलता है।
इन काली काली……..
छोटे दिए ने हंसकर कहा-
बड़े भाई अंत तो होना है।
जो जला आज कल बुझना है।
ये सोच,सोच क्यों रखता है।
जो होना है सो होता है।
शम्मा है तू परवाना है अपनी मंजिल भी पाना है।
खुद में विश्वास जगा ले तू,वापिस फिर कोई न आता है।
इन काली काली…….
– सोमिल जैन ‘सोमू’

सोमिल जैन “सोमू’ जी का मानना है की अभी तक उन्होंने ऐसा कोई तीर नहीं मारा है जो वो आपको अपना परिचय दे सकें परंतु काव्यशाला नव कवि मंडली से जुड़ने की उत्सुकता ने उन्हें अपना परिचय लिखने पर विवश कर दिया। वह दलपतपुर, सागर मध्यप्रदेश के निवासी है द्वितीय वर्ष (कला) के विद्यार्थी हैं। उन्हें आजकल किताबों से प्रेम हो गया है और यही कारण है की उनकी रुचि लेखन में भी हो गयी है। वह कविता, गजल, नगमे और शायरी लिखने का शौक एवं जुनून रखते हैं। हम इसी जुनून को आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। हमें आशा है की आपको उनकी ये रचना पसंद आएगी।
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नन्हा सा दीपक
धन्यवाद
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very nice poem
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धन्यवाद
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Really appreciate
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