दिल की रंगीनियों से वाक़िफ़ हैं
फूल हैं, तितलियों से वाक़िफ़ हैं
आंधिओं की हंसी उड़ाएंगे
जो हमारे दियों से वाक़िफ़ हैं
हम अगर चुप हैं चुप ही रहने दे
हम तेरी ख़ामियों से वाक़िफ़ हैं
सर्द मौसम की चाँदनी रातें
मेरी बेचैनियों से वाक़िफ़ हैं
जिनको सच बोलने की आदत है
पाँव की बेड़ियों से वाक़िफ़ हैं

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में रहने वाले राज़िक अंसारी जी पिछले 25 वर्षों से शायरी कर रहे हैं । शायरी पढ़ने और मुशायरे , कवि सम्मेलन सुनने का शोक़ बचपन से ही रहा । राहत इंदौरी और नूर इंदौरी साहब की मजलिस में बैठ कर बहुत कुछ सीखने को मिला । उस्ताद नसीर अंसारी साहब की सरपरस्ती में शेर कहने की शुरुआत की । आज तक सीखने का सिलसिला जारी है । इंदौर से प्रकाशित होने वाले संध्य दैनिक ” प्रभात किरण ” के लिए लगातार चार साल तक हर दिन एक कालम ” नावक के तीर ” लिखते रहे । जिसमे रोज़ एक ताज़ा मुक्तक आज के हालात या किसी घटना पर होता था । हमें आशा है की आपको उनकी रचनाएँ पसंद आएँगी ।
राज़िक अंसारी जी द्वारा लिखी अन्य रचनाएँ
मजेदार
LikeLiked by 1 person
दमदार
LikeLike
शुक्रिया। उम्मीद है शाएर तक आपकी दाद पहुँचे
LikeLike
जरुर
LikeLike