चीजो की कीमत नहीं होती
वक़्त उनकी कीमत तय करता है।
गमो का खजाना है ,मेरे पास
देखे कितने दाम में अब ये बिकता है।
इस दौर में ख़रीदलो तुम मुझको भी
पर जो है ही नहीं , देखें हम भी कैसे बिकता है।
जरूरतों और बेबसी का आलम है ,साहब
बात इससे ज्यादा कुछ और नहीं
चल जाये तो खोटा सिक्का भी सोने के दाम बिकता हैं।
एक उसके लबो की हँसी के लिए ,खेल ये खेला
साँसे ,रूह ,अहसास और यादों की लगा दी नुमाईश
फिर भी उसके आगे ये सब लगता सस्ता है।
जिस्म की चाह रखने वालों मार दो मुझें
सुना है इस जमाने में मुर्दा भी बिकता है।

इनका नाम प्रिया आर्य है परंतु उनका मानना है की कवितायें दीवानेपन में लिखी जाती हैं इसीलिए वह प्रिया दीवानी के नाम से लिखना पसंद करती हैं। वह यह भी कहती हैं की वह सिर्फ़ अहसासों को कागज पर उतारती हैं और स्वतः उनका उनका कोई योगदान नहीं होता । हमें आशा है की आपको उनकी यह अनोखी सोच पसंद आएगी ।
बहुत खूब।
LikeLiked by 1 person
निश्चित ही एक उमदा रचना है। कवियत्री ने ख़ूब लिखा है
LikeLike
बेशक
LikeLike
जो की कीमत नहीं होती
वक़्त उनकी कीमत तय करता है।
bahut khub likha apne…..bahut badhiya kavita.
LikeLiked by 1 person