एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए – ख़ुमार बाराबंकवी

एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए ,
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए !

भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम ,
किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा , हमसे पूछिए !

आगाज़-ए-आशिकी का मज़ा आप जानिए ,
अंजाम-ए-आशिकी का मज़ा हमसे पूछिए !

जलते दियों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ ,
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए !

वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है ,
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए !

हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह ,
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए !

हम तौबा कर के मर गए कबले अजल “ख़ुमार” ,
तौहीन-ए-मयकशी का मज़ा हमसे पूछिये !!

– खुमार बाराबंकवी

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