देर से इंतज़ार है अपना
रोते फिरते हैं सारी सारी रात,
अब यही रोज़गार है अपना
दे के दिल हम जो गए मजबूर,
इस मे क्या इख्तियार है अपना
कुछ नही हम मिसाल-ऐ- उनका लेक
शहर शहर इश्तिहार है अपना
जिसको तुम आसमान कहते हो,
सो दिलो का गुबार है अपना
मीर तकी “मीर” की अन्य प्रसिध रचनायें
- आए हैं मीर मुँह को बनाए
- कहा मैंने
- अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
- हस्ती अपनी हुबाब की सी है
- फ़क़ीराना आए सदा कर चले
- बेखुदी कहाँ ले गई हमको
- इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या
7 thoughts on “बेखुदी कहाँ ले गई हमको – मीर तकी “मीर””