कोहरे के खेत – कैफ़ि आज़मी

वो सर्द रात जबकि सफ़र कर रहा था मैं
रंगीनियों से जर्फ़-ए-नज़र भर रहा था मैं

तेज़ी से जंगलों में उड़ी जा रही थी रेल
ख़्वाबीदा काएनात को चौंका रही थी रेल

मुड़ती उछलती काँपती चिंघाड़ती हुई
कोहरे की वो दबीज़ रिदा फ़ाड़ती हुई

पहियों की गर्दिशों में मचलती थी रागनी
आहन से आग बन के निकलती थी रागनी

पहुँची जिधर ज़मीं का कलेजा हिला दिया
दामन में तीरगी के गरेबाँ बना दिया

झोंके हवा के बर्फ़ बिछाते थे राह में
जल्वे समा रहे थे लरज़ कर निगाह में

धोके से छू गईं जो कहीं सर्द उँगलियाँ
बिच्छू सा डंक मारने लगती थीं खिड़कियाँ

पिछले पहर का नर्म धुँदलका था पुर-फ़िशाँ
मायूसियों में जैसे उमीदों का कारवाँ

बे-नूर हो के डूबने वाला था माहताब
कोहरे में खुप गई थी सितारों की आब-ओ-ताब

क़ब्ज़े से तीरगी के सहर छूटने को थी
मशरिक़ के हाशिए में किरन फूटने को थी

कोहरे में था ढके हुए बाग़ों का ये समाँ
जिस तरह ज़ेर-ए-आब झलकती हों बस्तियाँ

भीगी हुई ज़मीं थी नमी सी फ़ज़ा में थी
इक किश्त-ए-बर्फ़ थी कि मुअल्लक़ हवा में थी

जादू के फ़र्श सेहर के सब सक़्फ़-ओ-बाम थे
दोश-ए-हवा पे परियों के सीमीं ख़ियाम थे

थी ठण्डे-ठण्डे नूर में खोई हुई निगाह
ढल कर फ़ज़ा में आई थी हूरों की ख़्वाब-गाह

बन-बन के फेन सू-ए-फ़लक देखता हुआ
दरिया चला था छोड़ के दामन ज़मीन का

इस शबनमी धुँदलके में बगुले थे यूँ रवाँ
मौजों पे मस्त हो के चलें जैसे मछलियाँ

डाला कभी फ़ज़ाओं में ख़त खो गए कभी
झलके कभी उफ़ुक़ में निहाँ हो गए कभी

इंजन से उड़ के काँपता फिरता था यूँ धुआँ
लेता था लहर खेत में कोहरे के आसमाँ

उस वक़्त क्या था रूह पे सदमा न पूछिए
याद आ रहा था किस से बिछड़ना न पूछिए

दिल में कुछ ऐसे घाव थे तीर-ए-मलाल के
रो-रो दिया था खिड़की से गर्दन निकाल के

– कैफ़ि आज़मी

कैफ़ि आज़मी जी की अन्य प्रसिध रचनाएँ

  • झुकी झुकी सी नज़र
  • कोहरे के खेत
  • दोशीज़ा मालन (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • ताजमहल (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • दूसरा बनबास (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • तलाश (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • तसव्वुर (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • दाएरा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • नया हुस्न (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • नई सुब्‍ह (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • नए ख़ाके (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • प्यार का जश्न (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • नेहरू (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • अंदेशे (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • अब तुम आग़ोश-ए-तसव्वुर (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • अज़ा में बहते थे आँसू यहाँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • आज सोचा तो आँसू भर आए (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • आवारा सजदे (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • इब्ने-मरियम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • गुरुदत्त के लिए नोहा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • एक दुआ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • एक बोसा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है? (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • औरत (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • कभी जमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • कर चले हम फ़िदा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • काफ़िला तो चले (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • कोई ये कैसे बता ये कि वो तन्हा क्यों हैं (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • खार-ओ-खस तो उठें, रास्ता तो चले (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • ज़िन्दगी (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • चरागाँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • तुम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • तुम परेशां न हो (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • दस्तूर क्या ये शहरे-सितमगर के हो गए (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • दायरा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • दो-पहर (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • दोशीज़ा मालिन (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • नज़राना (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • मकान (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • मशवरे (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • मेरे दिल में तू ही तू है (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाए (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • पशेमानी (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • पहला सलाम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • पत्थर के ख़ुदा वहाँ भी पाये (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • बस इक झिझक है यही (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • लश्कर के ज़ुल्म (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • लाई फिर इक लग़्ज़िशे-मस्ताना तेरे शहर में (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • वक्त ने किया क्या हंसी सितम (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • वतन के लिये (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • वो कभी धूप कभी छाँव लगे (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • वो भी सराहने लगे अरबाबे-फ़न के बाद (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • सदियाँ गुजर गयीं (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • सुना करो मेरी जाँ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • सोमनाथ (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • शोर यूँ ही न परिंदों ने मचाया होगा (शीघ्र प्रकाशित होंगी)
  • हाथ आकर लगा गया कोई (शीघ्र प्रकाशित होंगी)

 

हिंदी ई-बुक्स (Hindi eBooks)static_728x90

 

Advertisement

15 thoughts on “कोहरे के खेत – कैफ़ि आज़मी

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s