शायद मैं …सही था
हाँ मैं गलत था
मैं गुस्से में था …
उस दिन जाने से पहले
वो कुछ कहना चाहती थी
पर मैं उसकी बोलती आँखों को सुन ही नहीं पाया
जाते हुए उसकी हाथों की उंगलिया छु गयी थी
शायद वो मुझे उसे रोकने के लिए कह रही थी
पर मैं महसूस ही नहीं कर पाया
वो मंद हवाओं में उड़ते बाल
मेरे चेहरे पर कुछ लिख रहे थे
पर मैं कुछ पढ़ ही नहीं पाया
और आज …
आज वो आँखें इतनी दूर चली गयी
की ये आँखें उन्हें देख ही नहीं सकती
ये हाथ उन उंगलियों को छु
ही नहीं सकते
और बाल …
बाल पहले से छोटे है अब वो सावन के मौसम की मंद हवाओं में नहीं लहराते
काव्यशाला द्वारा प्रकाशित रचनाएँ
Sundar abhivyakti…
LikeLike
Beautiful ji😃
LikeLike
……वेदना से पूर्ण ….स्वयं को अप्रत्यक्ष रूप से दोषी करार देना
LikeLike