भूषण राष्ट्रीय भावों के गायक है। उनकी वाणी पीड़ित प्रजा के प्रति एक अपूर्व आश्वसान हैं। इनका समय औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब के समय से मुगल वैभव व सत्ता की पकड़ कमजोर होती जा रही थी। औरंगजेब की कटुरता व हिन्दुओं के प्रति नफरत ने उसे जनता से दूर कर दिया था। संकट की इस घड़ी में भूषण ने दो राष्ट्रीय पुरूषों – शिवाजी व छत्रसाल के माध्यम से पूरे राष्ट्र में राष्ट्रीय भावना संचारित करने का प्रयास किया। उस समय की एक कविता नीचे प्रस्तुत है।
गरुड़ को दावा जैसे नाग के समूह पर
दावा नाग जूह पर सिंह सिरताज को
दावा पूरहूत को पहारन के कूल पर
दावा सब पच्छिन के गोल पर बाज को
भूषण अखंड नव खंड महि मंडल में
रवि को दावा जैसे रवि किरन समाज पे
पूरब पछांह देश दच्छिन ते उत्तर लौं
जहाँ पातसाही तहाँ दावा सिवराज को
कवि भूषण द्वारा अन्य प्रसिध रचनाएँ
- इंद्र जिमि जंभ पर
- छ्त्रसाल : प्रशस्ति
- ब्रह्म के आनन तें निकसे
- राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यौ
- जिहि फन फुत्कार उड़त पहाड़ भार
- गरुड़ को दावा
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