ऐसे ही विचरण करता मन पहुँच गया क्रीड़ास्थल पर,
ऋषिमा जहाँ खेलने आती , अपनी मम्मी को संग लेकर ।
साधन वहाँ प्रतिस्थापित थे मन बहलाने हेतु अनेक
किन्तु अनूठा दिखलाई , पड़ता था उनमें से एक ।
वह था एक अचेतन लेकिन , होता प्रतीत चेतन युक्त
लहराता दोनों हाथों को मानो करता सबका स्वागत ।
सुघड़ मनोहर उसकी काया , सुदृढ़ अंग परम बलवान
चौखम्बों का ले आधार, धरा पर खड़ा संतरी समान ।
ग्रीष्मकाल में रवि की ज्वाला, उसका तन झुलसाती थी
शीतकाल में हिम की चादर उसकी काया ढक देती थी ।
वर्षा हो या आँधी तूफ़ान , निर्विकार झेला करता था
धूप छांव आती जाती थी, वो सबको सहता रहता था ।
वहाँ लगे खेल उपकरणों में , वह सबसे अलबेला था
ऋषिमा को सबसे प्यारा , वह झूला बड़ा निराला था ।
– ज्ञान प्रकाश सिंह
यह कविता लेखक श्री ज्ञान प्रकाश सिंह की पुस्तक ‘माई चाइल्ड ऋषिमा” से ली गयी है । पूरी पुस्तक ख़रीदने हेतु निकटतम पुस्तक भंडार जायें । आप ये पुस्तक ऑनलाइन भी ऑर्डर कर सकते हैं । सम्पर्क करें kavyashaala@gmail.com पर । भारती प्रकाशन मूल्य रु 200 /-
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यूनिवर्सिटी ऑफ़ रुड़की से सिविल एंजिनीरिंग में ग्रैजूएशन के उपरांत कुछ समय सी.पी.डब्ल्यू.डी और यू.पी. हाउज़िंग एंड डिवेलप्मेंट बोर्ड में कार्यरत रहे. तदुपरांत उ. प्र. लोक निर्माण विभाग जोईन किया एवं अभियंता अधिकारी के रूप में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में कार्यरत रहे तथा वहीं से सेवानिवृत हुए । माई चाइल्ड ऋषिमा छोटी बच्ची ऋषिमा की बाल गतिविधियों से सम्बंधित कहानियों एवं कविताओं के रूप में इनकी पहली पुस्तक है । लम्बे अंतराल के पश्चात् बंद पड़ा लेखन पुनः प्रारम्भ किया है ।
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