कुछ नहीं… – विकाश कुमार

 

जिया भी कुछ नहीं ,
किया भी कुछ नहीं…
वो एक मौज आके यूँ गयी की…
बहा भी कुछ नहीं ,
और रहा भी कुछ नहीं ।

लिया भी कुछ नहीं ,
दिया भी कुछ नहीं ।
रिश्तों का हिसाब करके देखा तो समझा…
ख़र्चा भी कुछ नहीं ,
बचा भी कुछ नहीं ।

कहा भी कुछ नहीं ,
सुना भी कुछ नहीं ।
ज़िंदगी तूने कुछ घाव ऐसे दिए…
हरे भी कुछ नहीं ,
भरे भी कुछ नहीं ।

मंज़िल भी कुछ नहीं,
हासिल भी कुछ नहीं ।
हम अकेले इस सफ़र में…
मिला भी कुछ नहीं ,
गिला भी कुछ नहीं ।

                      – विकाश कुमार

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